भगवान शंकर ने समस्त भोगों का परित्याग कर रखा है; परंतु देखा यह जाता है कि जो देवता असुर अथवा मनुष्य उनकी उपासना करते हैं, वे प्रायः धनी और भोग संपन्न हो जाते हैं। और भगवान विष्णु लक्ष्मी पति है, परंतु उनकी उपासना करने वाले प्रायः धनी और भोग सपन्न नहीं होते। दोनों प्रभु त्याग और भोग की दृष्टि से एक दूसरे से विरुद्ध स्वभाव वाले हैं, परंतु उनके उपासको को उनके स्वरूप के विपरीत फल मिलता है।" इस विषय में बड़ा संदेह है कि त्यागी की उपासना से भोग और लक्ष्मीपति की उपासना से त्यागकैसे मिलता हैं ? श्री शुकदेव जी कहते हैं-शिव जी सदा अपनी शक्ति से युक्त रहते हैं वे सत आदि गुणों से युक्त तथा अहंकार के अधिष्ठाता हैं। अहंकार के तीन भेद हैं_वैकारिक, तेजस और तामस। त्रिविध अहंकार से 16 विकार हुए 10 इंद्रिय पांच महाभूत और एक मन। अतः इन सब के अधिष्ठात्री देवताओं में से किसी एक की उपासना करने पर समस्त ऐश्वर्ययो की प्राप्ति हो जाती है। परंतु भगवान श्रीहरि तो प्रकृति से परे स्वयं पुरुषोत्तम एवं प्राकृत गुण रहित है।वह सर्वज्ञ तथा सब के अंतःकरण के साक्षी है जो उनका भजन करता है वह स्वयं
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