भगवान श्री कृष्ण ने वासुदेव जी से कहा-
पिताजी! *आत्मा तो एक ही है। परंतु वह अपने में ही गुणों की सृष्टि कर लेता है और गुणों के द्वारा बनाए हुए पंच भूतों में एक होने पर भी अनेक, स्वयं प्रकाश होने पर भी दृश्य, अपना स्वरूप होने पर भी अपने से भिन्न, नित्य होने पर भी अनित्य और निर्गुण होने पर भी सगुण के रूप में प्रतीत होता है।*24.
"जैसे आकाश, वायु,अग्नि,जल और पृथ्वी --यह पंचमहाभूत अपने कार्य घट कुंडल आदि में प्रकट-अप्रकट, बड़े-छोटे अधिक-थोड़े, एक और अनेक से प्रतीत होते हैं-- परंतु वास्तव में सत्तारूप से वे एक ही रहते हैं;वैसे ही आत्मा में भी उपाधियों के भेद से ही नानात्व की प्रतीति होती है। इसलिए जो मैं हूं, वही सब है-- इस दृष्टि से आपका कहना ठीक ही है।*25.
भागवत महापुराण,दशम स्कंध,अध्याय 85श्लोक24,25.
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