Skip to main content

भागवत महापुराण आज

भगवान श्री कृष्ण ने वासुदेव जी से कहा- पिताजी! *आत्मा तो एक ही है। परंतु वह अपने में ही गुणों की सृष्टि कर लेता है और गुणों के द्वारा बनाए हुए पंच भूतों में एक होने पर भी अनेक, स्वयं प्रकाश होने पर भी दृश्य, अपना स्वरूप होने पर भी अपने से भिन्न, नित्य होने पर भी अनित्य और निर्गुण होने पर भी सगुण के रूप में प्रतीत होता है।*24.
"जैसे आकाश, वायु,अग्नि,जल और पृथ्वी --यह पंचमहाभूत अपने कार्य घट कुंडल आदि में प्रकट-अप्रकट, बड़े-छोटे अधिक-थोड़े, एक और अनेक से प्रतीत होते हैं-- परंतु वास्तव में सत्तारूप से वे एक ही रहते हैं;वैसे ही आत्मा में भी उपाधियों के भेद से ही नानात्व की प्रतीति होती है। इसलिए जो मैं हूं, वही सब है-- इस दृष्टि से आपका कहना ठीक ही है।*25.
भागवत महापुराण,दशम स्कंध,अध्याय 85श्लोक24,25.

Comments

Popular posts from this blog

1से30

1.वसुदेव देवकी का विवाह  2देवताओं द्वारा गर्भ स्तुति 3 श्री कृष्ण का ताकत प्राकट्य 4 योग माया की भविष्यवाणी  5जन्म महोत्सव 6 पूतना उद्धार 7 सकट भंजन और तृणावर्त उद्धार  8नामकरण संस्कार और बाल लीला  9 उखल से बांधा जाना  10.यमाल अर्जुन का उद्धार  11.वृंदावन जाना वत्सासुर और बकासुर का उद्धार। 12.अघासुर का उद्धार  13.ब्रह्मा जी का मोह और उसका नास 14. ब्रह्मा स्तुति  15.धेनु का सुर का वध, कालिया नाग नाथन 16. कालिया पर कृपा  17 .कालिया के दह में आने की कथा, दावानल से बचाना। 18. पर लंबा सुर का उद्धार 19.   गौ ओ और गोपो को दावा नल से बचाना 20.  वर्षा और शरद ऋतु का वर्णन  21. वेणु गीत  22. चीरहरण  23. यज्ञ पत्नियों पर कृपा 24 .  इंद्र यज्ञ निवारण  25 गोवर्धन धारण 26 नंद बाबा और गोपो की कृष्ण के प्रभाव के बारे में चर्चा चर्चा 27.  श्री कृष्ण का अभिषेक 28. वरुण लोक से नंद जी को छुड़ाकर लाना। 29 रासलीला का आरंभ  30. विरह गीत।

88. शिवजी का संकटमोचन

भगवान शंकर ने समस्त भोगों का परित्याग कर रखा है; परंतु देखा यह जाता है कि जो देवता असुर अथवा मनुष्य उनकी उपासना करते हैं, वे प्रायः धनी और भोग संपन्न हो जाते हैं। और भगवान विष्णु लक्ष्मी पति है, परंतु उनकी उपासना करने वाले प्रायः धनी और भोग सपन्न नहीं होते। दोनों प्रभु त्याग और भोग की दृष्टि से एक दूसरे से विरुद्ध स्वभाव वाले हैं, परंतु उनके उपासको को उनके स्वरूप के विपरीत फल मिलता है।"  इस विषय में बड़ा संदेह है कि  त्यागी की उपासना से भोग और लक्ष्मीपति की उपासना से त्यागकैसे मिलता हैं ? श्री शुकदेव जी कहते हैं-शिव जी सदा अपनी शक्ति से युक्त रहते हैं वे सत आदि गुणों से युक्त तथा अहंकार के अधिष्ठाता हैं। अहंकार के तीन भेद हैं_वैकारिक, तेजस और तामस। त्रिविध अहंकार से 16 विकार हुए 10 इंद्रिय पांच महाभूत और एक मन। अतः इन सब के अधिष्ठात्री देवताओं में से किसी एक की उपासना करने पर समस्त ऐश्वर्ययो की प्राप्ति हो जाती है। परंतु भगवान श्रीहरि तो प्रकृति से परे स्वयं पुरुषोत्तम एवं प्राकृत गुण रहित है।वह सर्वज्ञ तथा सब के अंतःकरण के साक्षी है जो उनका भजन करता है वह स्...

32. प्रेम

गोपियों ने कहा- नट नागर !कुछ लोग तो ऐसे होते हैं ,जो प्रेम करने वालों से ही प्रेम करते हैं,और कुछ लोग प्रेम न करने वालों से भी प्रेम करते हैं। परंतु कोई कोई दोनों से ही प्रेम नहीं करते।प्यारे !इन तीनों में तुम्हें कौन सा अच्छा लगता है? भगवान श्री कृष्ण ने कहा_मेरी प्रिय सखियों! जो लोग प्रेम करने पर प्रेम करते हैं उनका तो सारा उद्योग स्वार्थ को लेकर है। लेन देन मात्र है,ना तो उनमें सौहार्द है और न तो धर्म। उनका प्रेम केवल स्वार्थ के लिए ही है। इसके अतिरिक्त उनका और कोई प्रयोजन नहीं है। सुंदरियों! जो लोग प्रेम न करने वाले से भी प्रेम करते हैं_जैसे स्वभाव से ही करुणा शील सज्जन और माता पिता_उनका हृदय सौहार्द से हितेशिता से भरा रहता है, और सच पूछो तो उनके व्यवहार में निश्चल,सत्य एवं पूर्ण धर्म भी है। कुछ लोग ऐसे होते हैं,जो प्रेम करने वालों से भी प्रेम नहीं करते, न प्रेम करने वालों का तो उनके सामने कोई प्रश्न ही नहीं है। ऐसे लोग चार प्रकार के होते हैं। 1.एक तो वे, जो अपने स्वरूप में ही मस्त रहतेहैं_जिन की दृष्टि में कभी द्वैतभाषता ही नहीं। 2.दूसरे वे, जिन्हें द्वेट तो भासता है, परंतु जो कृ...